भारत में तापमान से हुईं 35,000 मौतें • Temperature Extremes in India

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2001 से 2019 के बीच भारत में अत्यधिक गर्मी और सर्दी (Temperature Extremes in India) के कारण लगभग 35,000 लोगों की जान गई। यह रिपोर्ट नीति खामियों और लिंग असमानता को उजागर करती है।

1. कितनी जानें जाएँगी तब जागेगा देश?
2001 से 2019 के बीच भारत में कुल 34,890 तापमान-जनित मौतें दर्ज की गईं — 19,693 गर्मी से और 15,197 ठंड से। केवल 2015 में ही 3,054 लोग मारे गए। भारत मौसम विज्ञान विभाग और राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा पुष्टि की गई यह संख्या हमारे आपदा-प्रबंधन की गंभीर कमी को उजागर करती है। ये आंकड़े सिर्फ संख्या नहीं, बल्कि टूटे हुए परिवारों की कहानियां हैं।

2. कुछ राज्य क्यों बने हैं मौत के केंद्र?
आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश और ओडिशा जैसे राज्य सबसे ज़्यादा गर्मी से प्रभावित हुए, जबकि यूपी, बिहार और पंजाब को ठंड ने सबसे ज़्यादा नुकसान पहुंचाया। उदाहरण के लिए, आंध्र प्रदेश में 3,000 से अधिक मौतें दर्ज की गईं। इन आंकड़ों को राज्यस्तरीय मौसम और मृत्यु आंकड़ों से दोहराकर सत्यापित किया गया है, जो दिखाता है कि सामाजिक और भौगोलिक असमानता मृत्यु दर को कैसे प्रभावित करती है।

🧊 त्वरित तथ्य बॉक्स: भारत में तापमान से मौतें (2001–2019)

  • कुल मौतें: 34,890
  • गर्मी से मौतें: 19,693
  • ठंड से मौतें: 15,197
  • सबसे खराब वर्ष: 2015 (3,054 मौतें)
  • सबसे प्रभावित राज्य: आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब
  • स्रोत: भारत मौसम विभाग और राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो

3. क्यों पुरुषों की जान ज़्यादा जा रही है?
पुरुषों की मृत्यु दर महिलाओं की तुलना में 3 से 7 गुना ज़्यादा है — गर्मी में 3–5 गुना, ठंड में 4–7 गुना। विशेष रूप से 30–59 वर्ष के पुरुष जो बाहर काम करते हैं, सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। यह डेटा 24 राज्यों के 2001 से 2014 तक के रिकॉर्ड से लिया गया है और यह दर्शाता है कि भारत में श्रमिक सुरक्षा नीतियों में बड़ी कमी है।

4. क्या मज़दूरों की मौतें सिर्फ आंकड़े हैं?
भारत के दिहाड़ी मज़दूर और खेतिहर श्रमिक सबसे ज़्यादा गर्मी के शिकार हैं। उत्तर भारत में तापमान कई बार 47°C से ऊपर चला जाता है। विशेषज्ञों ने तीव्र गर्मी में बाहरी काम को रोकने की सिफारिश की है, लेकिन अब तक यह सुझाव नीति में नहीं बदला गया है। यह निष्कर्ष NCRB और IMD के आधिकारिक आंकड़ों से पुष्टि किया गया है।

5. क्या महिलाएं सच में सुरक्षित हैं या आंकड़े अधूरे हैं?
महिलाओं की मौतें कम दर्ज हुई हैं, परंतु यह हो सकता है कि उनके लिए जोखिम की सही गणना नहीं हुई है। महिलाएं अधिकतर समय घर के अंदर रहती हैं, जहां भीषण गर्मी में पर्याप्त ठंडक की व्यवस्था नहीं होती। शोधकर्ताओं का कहना है कि अगला कदम महिलाओं के घरेलू तापमान जोखिम पर अध्ययन होना चाहिए। यह जरूरी है ताकि महिलाओं की सही स्थिति नीतियों में झलक सके।

6. क्या सरकार के पास समाधान है या सिर्फ आश्वासन?
यह अध्ययन स्पष्ट करता है कि हर राज्य की स्थिति अलग है, इसलिए नीति भी स्थानीय होनी चाहिए। सरकार को चेतावनी प्रणाली, गर्मी-संवेदनशील निर्माण और मजबूत स्वास्थ्य नीतियों में निवेश करना होगा। शोधकर्ता बताते हैं कि भारत की मृत्यु पंजीकरण प्रणाली अपूर्ण है, जिससे सच्चाई छिप जाती है। ये आंकड़े IMD, NCRB और स्वतंत्र शोध संस्थानों के जरिए दोहराकर सत्यापित किए गए हैं।

7. विशेषज्ञों की चेतावनी को कब सुनेंगे हम?
“जलवायु नहीं मारती, हमारी लापरवाही मारती है,” पर्यावरण स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. एम. रमेश कहते हैं। “ये मौतें रोकी जा सकती थीं। हमें व्यवस्था बदलनी होगी।” 24 राज्यों से इकट्ठे किए गए डेटा और परिवारों की भावनात्मक कहानियाँ इस चेतावनी को और सशक्त बनाती हैं। यह एक अनदेखा संकट नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय आपातकाल बन चुका है। यह कहानी केवल आंकड़ों की नहीं, इंसानी जिंदगियों की है। यह हमें नीति, करुणा और कार्रवाई की नज़र से पुनः सोचने को मजबूर करती है।

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An educator for over 14 years with a background in science, technology, and geography, I simplify complex social topics with clarity and curiosity. Crisp, clear, and engaging writing is my craft—making knowledge accessible and enjoyable for all.

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