Swapneswar Temple को एएसआई ने संरक्षित स्मारक घोषित किया
ओडिशा के 6वीं सदी के Swapneswar Temple स्वप्नेश्वर महादेव मंदिर को एएसआई ने संरक्षित स्मारक घोषित किया। भारत की विरासत का यह अनमोल हिस्सा अब सुरक्षित और सम्मानित है।
विरासत का पुनर्जागरण
6वीं सदी का शिव मंदिर घोषित हुआ राष्ट्रीय धरोहर
2 जुलाई 2025 को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने ओडिशा के खोरधा जिले के स्वप्नेश्वर महादेव मंदिर को संरक्षित स्मारक घोषित किया। यह मंदिर 6वीं सदी में शैलोद्भव वंश के समय बना था और पुंजीआमा गांव, बनपुर ब्लॉक में स्थित है। गजट अधिसूचना में इसे “राष्ट्रीय महत्व का स्मारक” कहा गया है। भारत में 3,700 से अधिक संरक्षित स्मारक हैं, लेकिन बहुत कम ऐसे हैं जो प्रारंभिक मध्यकालीन काल से जुड़े हैं। मंदिर की मूल शिवलिंग और पत्थर की नक्काशी इसे अद्वितीय बनाती हैं। यह कदम इसे पर्यावरणीय नुकसान और उपेक्षा से बचाने की दिशा में बड़ा कदम है।
राजनीतिक गति
डबल इंजन सरकार ने संरक्षण कार्यों को दी रफ्तार
2024 में ओडिशा में बीजेपी की डबल इंजन सरकार बनने के बाद, स्वप्नेश्वर मंदिर के संरक्षण को असली रफ्तार मिली। राज्य और केंद्र के तालमेल से काम तेजी से बढ़ा। कानून मंत्री पृथ्वीराज हरिचंदन के अनुसार, प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री मोहन माजhi की साझा सोच के कारण एएसआई ने तेजी से कदम उठाया। पहले जहाँ ऐसी घोषणाओं में 3–5 साल लगते थे, अब एक साल से भी कम समय में मंदिर संरक्षित घोषित हुआ। सांस्कृतिक संरक्षण, जो पहले प्राथमिकता नहीं थी, अब सरकारी एजेंडे में प्रमुख बन चुका है।
इतिहास की अनदेखी
पहले भी पहचान मिली लेकिन दशकों तक उपेक्षित रहा मंदिर
1977–78 में, ओडिशा के तत्कालीन संस्कृति मंत्री बिस्वभूषण हरिचंदन ने मंदिर की देखभाल राज्य के एन्डोमेंट कमीशन को दी थी। लेकिन आने वाले दशकों में मंदिर उपेक्षा का शिकार हो गया—दीवारों में दरारें आईं, पेड़ उग आए, और गर्भगृह जर्जर हो गया। टाइम्स ऑफ इंडिया की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, ओडिशा के 60% ग्रामीण मंदिरों को कोई सुरक्षा नहीं मिली थी। स्वप्नेश्वर भी उन्हीं में से एक था। महाशिवरात्रि पर पूजा होती रही, पर कोई नियमित देखरेख नहीं थी। अब जो पुनर्जीवन हुआ है, वह उन जगहों के लिए उम्मीद है जो चुपचाप मिटने की कगार पर थीं।
🟨 तथ्य बॉक्स:
- मंदिर का नाम: स्वप्नेश्वर महादेव
- स्थान: पुंजीआमा गांव, बनपुर, खोरधा, ओडिशा
- संरक्षित घोषित: 2 जुलाई 2025 (एएसआई द्वारा)
- निर्माण काल: शैलोद्भव वंश, 6वीं सदी
- सरकारी गति: डबल इंजन सरकार, 2024 से
वास्तुशिल्पीय मूल्य
शैलोद्भव युग की दुर्लभ शैली आज भी सुरक्षित
मंदिर की बनावट ओडिशा की पारंपरिक स्थापत्य शैली को दर्शाती है जो कालिंगा शैली से पहले की है। ASI रिकॉर्ड्स के अनुसार, भारत में संरक्षित मंदिरों में सिर्फ 3% ही शैलोद्भव युग के हैं। स्वप्नेश्वर में वर्गाकार गर्भगृह, रेखा-देउल शैली और बिना रंग या प्लास्टर की पत्थर की छत है। इसकी सादगी ही इसकी शक्ति है। विशेषज्ञ मानते हैं कि भुवनेश्वर का परशुरामेश्वर मंदिर, जो इसी काल का है, पहले से संरक्षित होने के कारण बेहतर स्थिति में है। अब जब एएसआई इसकी देखरेख करेगा, तो यह भी अपनी पुरानी गरिमा पा सकेगा।
सांस्कृतिक धड़कन
स्थानीय श्रद्धालुओं ने मंदिर की घोषणा का किया स्वागत
संरक्षण की घोषणा के बाद से पुंजीआमा और बनपुर के लोग रोज आरती, भजन और दीप प्रज्वलन से मंदिर का उत्सव मना रहे हैं। 3 जुलाई को 2,000 से अधिक श्रद्धालु वहां जुटे। ओडिशा में मंदिर केवल पूजा स्थल नहीं, बल्कि सामुदायिक जीवन का केंद्र होते हैं। ओडिशा टूरिज्म बोर्ड की 2024 रिपोर्ट बताती है कि ग्रामीण मंदिरों के 72% दर्शक स्थानीय परिवार होते हैं, जो दर्शन के साथ त्योहार भी मनाते हैं। स्वप्नेश्वर सिर्फ प्राचीन पत्थर नहीं—यह एक जीवंत परंपरा है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है।
प्रशासनिक बदलाव
एएसआई की देखरेख में संरक्षण और शोध को मिलेगी दिशा
अब एएसआई मंदिर की संरचना, डिजिटल दस्तावेज़ीकरण, पर्यटक सुविधा और बागवानी की ज़िम्मेदारी संभालेगा। मंदिर को 3D मैपिंग से स्कैन किया जाएगा और वहां एक स्थायी संरक्षण अधिकारी नियुक्त किया जाएगा। उम्मीद है कि 2026 में इसे “भारत के भूले-बिसरे मंदिर” पर्यटन सर्किट में शामिल किया जाएगा। 2024 में एएसआई ने 314 स्थलों का पुनर्निर्माण किया, जिनमें से 27 ओडिशा से थे। अब स्थानीय व्यवस्था से हटकर विशेषज्ञों के हाथों में मंदिर जाएगा, जिससे इसकी सुरक्षा लंबे समय तक सुनिश्चित होगी।
आध्यात्मिक विरासत
मंदिर दर्शाता है भारत की गहरी धार्मिक परंपराएं
स्वप्नेश्वर सिर्फ एक शिव मंदिर नहीं—यह भारत में शैव परंपरा की शुरुआती झलक है। शैलोद्भव वंश ने पूर्वी भारत में शिवभक्ति को बढ़ावा दिया था। Smithsonian Magazine के अनुसार, 5वीं से 8वीं सदी के बीच भारत में मंदिर पूजा सामाजिक और धार्मिक जीवन का केंद्र बनी। स्वप्नेश्वर ऐसा ही एक स्थल था, जहां गांव के लोग न सिर्फ पूजा करते थे, बल्कि मेल-जोल, रीतियों और जीवन मूल्यों को साझा करते थे। ऐसी जगहें किताबों में नहीं, ज़मीन पर ज़िंदा रहती हैं—पक्के आंगन, मंदिर की घंटियों और बुजुर्गों की कहानियों में।
जनमानस की भागीदारी
ओडिशा के युवा और बुज़ुर्ग साथ आए मंदिर के लिए
स्कूलों में पोस्टर, बुज़ुर्गों की कहानियां, सोशल मीडिया पर हैशटैग—स्वप्नेश्वर अब ओडिशा की आवाज़ बन गया है। स्थानीय स्कूलों ने इसे अपने पाठ्यक्रम में जोड़ा है। #SaveSwapneswar और #TempleHeritage जैसे हैशटैग ने 3 दिनों में 11 लाख से ज़्यादा इंप्रेशन हासिल किए। Indian Express की रिपोर्ट के मुताबिक, एएसआई को 700 से ज़्यादा ईमेल लोगों ने मंदिर संरक्षण की सराहना में भेजे। ओडिशा, जो अक्सर खबरों में पीछे रहता है, अब अपनी मंदिरों के ज़रिए राष्ट्र का ध्यान खींच रहा है। यह सिर्फ मंदिर नहीं—यह गौरव का प्रतीक बन गया है।
पवित्र संदेश
एक मंदिर की रक्षा से प्रेरित हो सकता है पूरा देश
स्वप्नेश्वर महादेव का पुनर्जागरण सिर्फ ओडिशा की नहीं, पूरे देश की जीत है। हर वो व्यक्ति जिसने कभी टूटा-फूटा मंदिर देखा और सोचा “काश कोई इसे बचाता”—अब उसे जवाब मिल गया है। विरासत केवल दीवारें नहीं होतीं—वो उन लोगों की प्रार्थनाएं होती हैं जो सदियों से वहां सिर झुकाते आए हैं। पुरातत्वविद रीना दाश के शब्दों में, “जब आप एक मंदिर को बचाते हैं, तो एक स्मृति को बचाते हैं—यह हमारी ज़िम्मेदारी है।” अब समय है कि हम और आप भी आगे बढ़ें—याद रखें, समझें और संभालें।
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