तेलंगाना में मिले सातवाहन युग के अभिलेखों ने बदला दक्कन का प्राचीन इतिहास • Satavahana Period Inscriptions

तेलंगाना के गुंडाराम रिज़र्व फ़ॉरेस्ट में सातवाहन काल के ग्यारह अभिलेख (Satavahana Period Inscriptions) मिले हैं, जो प्राचीन भारत में राजवंशीय गठबंधनों, धार्मिक प्रतीकों और दक्कन की राजनीतिक संरचना को उजागर करते हैं।
1. तेलंगाना के गुंडाराम वन में एएसआई ने क्या खोजा?
अप्रैल 2025 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने तेलंगाना के गुंडाराम रिज़र्व फ़ॉरेस्ट में सातवाहन काल के ग्यारह अभिलेखों की खोज की। इनमें दो अभिलेख हारितिपुत्र वंश का उल्लेख करते हैं, जिससे चुटु राजवंश के साथ उनके संबंधों का संकेत मिलता है। ये अभिलेख प्रारंभिक ब्राह्मी लिपि में हैं और 1वीं–2वीं शताब्दी ईस्वी के माने गए हैं। इन्हें पुरालेखविदों द्वारा प्रमाणित किया गया है और सातवाहन कालीन ताम्रपत्रों से तुलना की गई है, जिससे यह क्षेत्र ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ है।
2. ये अभिलेख भावनात्मक और ऐतिहासिक रूप से क्यों महत्वपूर्ण हैं?
ये अभिलेख न केवल राजवंशों का इतिहास बताते हैं, बल्कि तेलंगाना की पहचान को प्राचीन भारत की राजनीतिक धारा में भावनात्मक रूप से जोड़ते हैं। त्रिशूल और डमरू जैसे धार्मिक प्रतीकों की उपस्थिति से राज्य और धर्म की मिली-जुली भूमिका स्पष्ट होती है। ऐसे प्रतीकों का उल्लेख केवल 3% ब्राह्मी अभिलेखों में मिलता है। वनों में इनका पाया जाना यह दर्शाता है कि राजनीतिक प्रभाव केवल नगरों तक सीमित नहीं था। इनसे तेलंगाना के अस्मक महाजनपद होने की पुष्टि होती है।
3. सातवाहन कौन थे और आज भी क्यों प्रासंगिक हैं?
सातवाहनों ने लगभग 400 वर्षों तक शासन किया, जिसकी शुरुआत पहली शताब्दी ईसा पूर्व के मध्य में हुई। गौतमीपुत्र सातकर्णि जैसे शासकों ने राज्य को मालवा तक विस्तारित किया और शक शासकों को पराजित किया। उस काल के लगभग 15% सिक्के सातवाहन मिंटों से आए थे। ये अभिलेख अमरावती और पैठण जैसी पुरातत्व स्थलों से प्राप्त सामग्री से मेल खाते हैं। एएसआई के सिक्काविज्ञान विश्लेषण द्वारा इसकी पुष्टि की गई है, जिससे इनकी ऐतिहासिक प्रामाणिकता पुष्ट होती है।
त्वरित तथ्य बॉक्स
तथ्य | विवरण |
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खोज की तिथि | अप्रैल 2025 |
स्थान | गुंडाराम रिज़र्व फ़ॉरेस्ट, तेलंगाना |
अभिलेखों की संख्या | 11 |
प्रयुक्त लिपि | प्रारंभिक ब्राह्मी |
उल्लेखित वंश | हारितिपुत्र, सातवाहन-चुटु संबंध |
प्रमाणीकरण | एएसआई, सिक्का अभिलेखों से तुलना |
4. ये अभिलेख प्राचीन भारत के अध्ययन में कैसे सहायक होंगे?
ये अभिलेख चुटु जैसे अल्पज्ञात वंशों के साथ सातवाहन संबंधों को उजागर करते हैं। केवल 2% अभिलेखों में ऐसे गठबंधनों का उल्लेख मिलता है, जिससे ये खोजें ऐतिहासिक रिक्त स्थान भरती हैं। ब्राह्मी लिपि की शैली नासिक और नागार्जुनकोंडा जैसे स्थलों से मिलती है, जिसे पुरालेखविदों ने प्रमाणित किया है। धार्मिक प्रतीकों की उपस्थिति बौद्ध संरक्षण की पुष्टि करती है—सातवाहन अभिलेखों का 60% हिस्सा मठों को दी गई दानभूमि से संबंधित है। ये खोजें विकेन्द्रित शासन की पुष्टि करती हैं।
5. विशेषज्ञों और इतिहासकारों की राय क्या है?
पूर्व एएसआई निदेशक डॉ. टी. सत्यामूर्ति ने कहा, “ये अभिलेख केवल ऐतिहासिक रिकॉर्ड नहीं, बल्कि जीवंत गवाही हैं।” वर्तमान पुरालेखविद आर. श्रीनिवास ने कहा, “यह खोज दक्कन की राजनीतिक भौगोलिक संरचना को पुनर्परिभाषित कर सकती है।” विशेषज्ञ मानते हैं कि चुटु-सातवाहन संबंधों का उल्लेख अब तक केवल 5% अभिलेखों में ही मिला है। इंडियन हिस्टॉरिकल रिव्यू में समीक्षा की प्रतीक्षा कर रही यह खोज तेलंगाना की प्राचीन कूटनीतिक भूमिका को प्रमाणिक रूप से दर्शाती है।
यह कहानी क्यों पढ़ना ज़रूरी है
यह कथा पौराणिकता, राजनीति और पुरातत्व का संगम है। तेलंगाना के नए अभिलेख सातवाहन विरासत को जीवन्त बनाते हैं और प्राचीन भारत के राजनीतिक संबंधों को मूर्त रूप में प्रस्तुत करते हैं।
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