जलवायु और जैव विविधता संकट में आदिवासी समुदाय क्यों हैं सबसे ज़रूरी कड़ी • Indigenous People
UN रिपोर्ट के अनुसार, विश्व की मात्र 6% जनसंख्या वाले आदिवासी समुदाय (Indigenous People) पृथ्वी की 80% जैव विविधता की रक्षा करते हैं, लेकिन उन्हें 1% से भी कम जलवायु वित्त प्राप्त होता है।
1. 2025 में UN की आदिवासी रिपोर्ट इतनी अहम क्यों है?
27 अप्रैल 2025 को जारी UN रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक जनसंख्या का केवल 6.2% आदिवासी हैं, लेकिन वे पृथ्वी की 80% जैव विविधता की रक्षा करते हैं। फिर भी उन्हें केवल 0.8% अंतर्राष्ट्रीय जलवायु वित्त ही मिलता है। UNEP और World Bank की पुष्टि से यह स्पष्ट है कि वैश्विक जलवायु नीति में भारी असमानता बनी हुई है, जिससे इन समुदायों की भूमिका और अधिकार दोनों उपेक्षित हो रहे हैं।
2. जलवायु परिवर्तन आदिवासी आजीविका के लिए क्यों बन गया है खतरा?
करीब 70% आदिवासी आजीविका कृषि, मछली पालन और वानिकी पर निर्भर है, जो जलवायु अस्थिरता के कारण संकट में है। 2012–2022 के बीच 45% समुदायों ने फसल उत्पादन में गिरावट दर्ज की। FAO और IPCC रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु बदलाव ने आत्मनिर्भरता घटाई है और इन समुदायों को 50 से अधिक देशों में बाहरी मदद पर निर्भर बना दिया है।
3. पारंपरिक भूमि का नुकसान आदिवासी समुदायों को कैसे प्रभावित करता है?
UN रिपोर्ट के अनुसार, 38% से अधिक आदिवासी भूमि पर जलवायु घटनाओं या औद्योगिक गतिविधियों के कारण अतिक्रमण हुआ है। केवल ब्राजील में 2000 से अब तक 24 लाख हेक्टेयर आदिवासी भूमि का वनों की कटाई में नुकसान हुआ। IUCN और Human Rights Watch की पुष्टि करती है कि भूमि क्षति का सीधा संबंध जैव विविधता क्षरण और जनजातीय विस्थापन से है।
4. जलवायु संकट आदिवासी स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित करता है?
WHO के अनुसार, आदिवासी समुदाय जलवायु से जुड़ी बीमारियों से 3 गुना अधिक प्रभावित होते हैं। कनाडा में 61% आदिवासी क्षेत्रों ने वनों की आग के धुएं से सांस की बीमारियों में वृद्धि दर्ज की। पारंपरिक खाद्य स्रोतों की हानि से कुपोषण बढ़ा है, और सीमित स्वास्थ्य सेवाएं इस संकट को और गहरा करती हैं, जैसा कि Lancet Planetary Health द्वारा प्रमाणित है।
5. आदिवासी भाषाएं और सांस्कृतिक विरासत क्यों खतरे में हैं?
600 से अधिक आदिवासी भाषाएं खतरे में हैं, जो पारिस्थितिकीय ज्ञान से जुड़ी हैं। जलवायु बदलाव से तटीय क्षेत्रों में 30+ परंपरागत संस्कार समाप्त हो चुके हैं। UNESCO के अनुसार, 40% संकटग्रस्त भाषाएं आदिवासी हैं। जैसे-जैसे पारिस्थितिकीय तंत्र बदलते हैं, सांस्कृतिक ज्ञान की पीढ़ियों में स्थानांतरण रुक जाता है, जिससे समुदायों की पहचान पर संकट मंडराता है।
त्वरित तथ्य बॉक्स:
वैश्विक आदिवासी जनसंख्या: ~476 मिलियन (6.2%)
संरक्षित जैव विविधता: ~80%
प्राप्त जलवायु वित्त: <1%
मुख्य आजीविकाएं: कृषि, वानिकी, मत्स्य पालन
खतरे में भाषाएं: >2,600 में से 40% आदिवासी
स्वास्थ्य जोखिम: 3 गुना अधिक
भूमि अतिक्रमण: 38% भूमि पर खतरा
प्रमुख स्रोत: UN 2025, WHO, UNESCO, IPCC
6. क्या पारंपरिक ज्ञान जलवायु नीति को दिशा दे सकता है?
मेक्सिको के कॉमकाक समुदाय द्वारा भाषा में निहित पारिस्थितिकी ज्ञान या सोमालिया में पेड़ न काटने की परंपरा, टिकाऊ विकास के उदाहरण हैं। ऑस्ट्रेलिया में ‘फायर-स्टिक’ खेती से 27% कम आग की तीव्रता देखी गई। UNEP और Nature Sustainability द्वारा पुष्टि की गई है कि पारंपरिक प्रणालियां अक्सर आधुनिक विधियों से अधिक प्रभावी होती हैं। इन्हें जलवायु रणनीति में शामिल करना अनिवार्य है।
7. विशेषज्ञ जलवायु नेतृत्व में आदिवासी भूमिका को कैसे देखते हैं?
UN सलाहकार डॉ. मिर्ना कनिंघम कहती हैं, “आदिवासी नेतृत्व की उपेक्षा केवल अन्याय नहीं बल्कि आत्मघाती है।” IPBES की सैंड्रा डियाज़ कहती हैं, “जहां आदिवासी अधिकार सुरक्षित हैं, वहां जैव विविधता फलती-फूलती है।” इन वक्तव्यों को UN और अंतरराष्ट्रीय मंचों ने बार-बार उद्धृत किया है, जो यह दर्शाता है कि जलवायु संकट से निपटने के लिए आदिवासी ज्ञान और नेतृत्व का समावेश जरूरी है।
इस कहानी को पढ़ना क्यों ज़रूरी है
यह लेख जलवायु न्याय, संस्कृति और संरक्षण को जोड़ते हुए आदिवासी समुदायों की भूमिका को प्रमाणित आँकड़ों के साथ उजागर करता है और टिकाऊ भविष्य के लिए नई दृष्टि प्रस्तुत करता है।
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