UNESCO ने सन्माना भगवद्गीता व नाट्यशास्त्र | Bhagavad Gita and Natyashastra
क्या हुआ?
17 अप्रैल 2025 को श्रीमद्भगवद्गीता और भरत मुनि के नाट्यशास्त्र (Bhagavad Gita and Natyashastra) को UNESCO की Memory of the World Register में जोड़ा गया है। गीता में 700 श्लोक हैं, जो अर्जुन और कृष्ण के संवाद के रूप में धर्म और कर्तव्य की गूढ़ बातें बताते हैं। नाट्यशास्त्र में 36,000 श्लोक हैं जो भारतीय रंगमंच, नृत्य और संगीत की आधारशिला माने जाते हैं। इस मान्यता के साथ भारत की इस रजिस्टर में कुल प्रविष्टियाँ 14 हो गई हैं, जिनमें ऋग्वेद, रामचरितमानस और पंचतंत्र भी शामिल हैं। यह सूची हर दो साल में अपडेट होती है और दस्तावेज़ी विरासत को संरक्षित रखने का उद्देश्य रखती है।
क्या जानना जरुरी?
UNESCO के Memory of the World Programme के तहत इन दो भारतीय ग्रंथों को शामिल किया जाना, विश्व के सांस्कृतिक विमर्श में भारत की प्राचीन ज्ञान परंपरा की उपस्थिति को और सुदृढ़ करता है। इस सूची में केवल उन्हीं ग्रंथों को स्थान मिलता है जो “outstanding universal value” रखते हैं। गीता के नैतिक दर्शन और नाट्यशास्त्र के ‘रस सिद्धांत’ जैसे विचार अब वैश्विक अध्ययन और शोध में प्रमुखता से जगह पाएंगे। इन ग्रंथों के अनुवाद पहले ही अनेक भाषाओं में हो चुके हैं और अब इन्हें संरक्षित और डिजिटल माध्यमों से और अधिक सुलभ बनाया जाएगा। यह कदम भारत की बौद्धिक धरोहर को आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाने में महत्त्वपूर्ण साबित होगा।
कौनसी 14 प्रविष्टियाँ?
UNESCO की Memory of the World Register में भारत की अब तक कुल 14 प्रविष्टियाँ हो चुकी हैं। इनमें हाल ही में जोड़ी गई भगवद्गीता और नाट्यशास्त्र के अलावा, ऋग्वेद (2007), पंचतंत्र (2024), रामचरितमानस (2024), शांतिनाथ चरित्र (2013), गिलगित पांडुलिपियाँ (2017), और अभिनवगुप्त की पांडुलिपियाँ (2023) जैसी कृतियाँ शामिल हैं। ये प्रविष्टियाँ चिकित्सा, दर्शन, साहित्य, कला, और धर्म जैसे क्षेत्रों को कवर करती हैं। पहली भारतीय प्रविष्टि 1997 में IAS तमिल मेडिकल पांडुलिपियाँ थीं। ये सभी दस्तावेज़ भारत की विविध, प्राचीन और समृद्ध बौद्धिक परंपरा को दर्शाते हैं, और अब वैश्विक संरक्षण व अध्ययन का हिस्सा बन गए हैं। यह सूची भारत की सांस्कृतिक पहचान को विश्व मंच पर मजबूती प्रदान करती है।
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