Arunachal Frontier Highway Project बाघों के गढ़ से होकर गुजरेगी
नामदाफा टाइगर रिज़र्व के 310 हेक्टेयर को सीमा हाईवे Arunachal Frontier Highway Project के लिए मोड़ा गया। 1.55 लाख पेड़ों पर कटाई का खतरा; वन्यजीव क्रॉसिंग पर अध्ययन होगा—बड़ी पारिस्थितिक चेतावनी।
क्या है मामला
कोर जंगल की ज़मीन हाईवे के लिए मोड़ी गई
26 जून को दिल्ली में नेशनल बोर्ड फॉर वाइल्डलाइफ़ की स्थायी समिति ने नामदाफा टाइगर रिज़र्व, चांगलांग (अरुणाचल प्रदेश) के कोर वनक्षेत्र के 310 हेक्टेयर को अरुणाचल फ्रंटियर हाईवे (NH‑913) के लिए मोड़ने की मंजूरी दी। यह हाईवे लिंक भारत‑म्यांमार सीमा के पास स्थित है और 3.5 मीटर की सड़क को इंटरमीडिएट लेन में बदलने का लक्ष्य रखता है। राज्य सरकार इसे सुरक्षा और सीमा कनेक्टिविटी बढ़ाने का जरिया मानती है, जबकि पर्यावरणविद इसमें आवासीय संकट की गहरी चिंता देख रहे हैं। यह फैसला विकास बनाम पारिस्थितिकी संतुलन की चुनौती को रेखांकित करता है—भारत के सबसे बड़े रिज़र्व में से एक, जहां 1,400 पशु प्रजातियाँ और दुर्लभ उष्णकटिबंधीय वर्षावन मौजूद हैं। यह दिखाता है कि संरक्षित कोर ज़ोन भी अधोसंरचना दबाव से सुरक्षित नहीं हैं।
पेड़ों पर असर
बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई जंगलों को झकझोर देगी
इस हाईवे परियोजना के लिए लगभग 1,55,000 पेड़ों को काटना पड़ेगा, जिनमें परिपक्व तने और झाड़ियाँ शामिल हैं जो पूरे 310 हेक्टेयर क्षेत्र में फैली हैं। यह लगभग 200 फुटबॉल मैदानों जितना जंगल खत्म करने के बराबर है। अरुणाचल के सघन उष्णकटिबंधीय वन कार्बन और जल का भंडारण करते हैं और वन्यजीवों के लिए घर हैं। स्थानीय लोगों को मिट्टी कटाव, भूस्खलन और जंगल की छतरी के टूटने की चिंता है। राज्य सरकार इसे “मध्यम” स्तर की कटाई बताती है, लेकिन विशेषज्ञ इसे 3.5 मीटर से इंटरमीडिएट लेन तक विस्तार के लिए अत्यधिक मानते हैं। भारतीय पाठकों के लिए—कल्पना करें आपके स्थानीय पार्क को साफ कर दिया गया और हजारों पेड़ गायब हो गए—आपको उस नुकसान का एहसास होगा, और नामदाफा के जीव भी यही महसूस करेंगे।
शमन संदेह
वन्यजीव क्रॉसिंग शायद काम न करें
स्वीकृत शमन उपायों में अंडरपास और कलवर्ट शामिल हैं, लेकिन संरक्षण विशेषज्ञों का कहना है कि ये “सरल” डिजाइन हैं जो बाघों या हाथियों जैसे महत्वपूर्ण वन्यजीवों की जरूरतों के अनुसार नहीं बने हैं। समिति के सदस्यों ने संकेत दिया कि इन संरचनाओं में यह अध्ययन शामिल नहीं है कि जानवर वास्तव में कहाँ पार करते हैं। समिति ने एक अनुसंधान‑आधारित मार्ग योजना की मांग की, जिसमें स्थानीय आवास आवश्यकताओं से मेल खाने वाले सटीक डिजाइन मानकों का उल्लेख किया गया। यदि जानवर इन अंडरपास से दूर रहें या उनका उपयोग न कर सकें, तो सड़क पर मृत्युदर और बाधाएं बढ़ सकती हैं। नामदाफा की जैव विविधता को देखते हुए, एक जैसे डिजाइन की नीति भारी नुकसान पहुँचा सकती है—बाघों को सिर्फ सुरंग नहीं चाहिए, उन्हें समझदारी से जगह चाहिए।
🔎 त्वरित तथ्य बॉक्स
- मोड़ा गया वन: नामदाफा कोर से 310 हेक्टेयर
- कटने वाले पेड़: ~1,55,000
- सड़क की चौड़ाई: 3.5 मीटर से इंटरमीडिएट लेन
- स्थान: चांगलांग जिला, अरुणाचल प्रदेश
- जैव विविधता: 1,400+ पशु प्रजातियाँ मौजूद
रणनीतिक महत्व
हाईवे सीमा और रक्षा लक्ष्यों को पूरा करता है
NH‑913 गलियारा खरसांग से विजय नगर तक फैला है, जो सीधे भारत‑म्यांमार सीमा के साथ चलता है। इसका ग्रीनफील्ड/ब्राउनफील्ड मिश्रण 1,748 किमी को कवर करता है, जिससे कनेक्टिविटी और रक्षा पहुंच में बढ़ोतरी होती है। जैसे-जैसे राष्ट्रीय सुरक्षा के लक्ष्य अधोसंरचना को दूरस्थ क्षेत्रों तक धकेलते हैं, जैव विविधता की कीमतें पीछे छूट जाती हैं। भारतीय पाठकों के लिए यह वैसा है जैसे राष्ट्रीय हित में संरक्षित भूमि पर एक सुपरहाईवे बनाना—लेकिन हमें यह सवाल उठाना चाहिए कि क्या वन्यजीवों की कीमत डिजाइन की समझदारी के बिना बहुत ज़्यादा है।
WII की भूमिका
वाइल्डलाइफ़ इंस्टिट्यूट योजना में शामिल हुआ
स्वीकृति सशर्त थी: भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) को तीन महीने में स्थान‑विशिष्ट पशु मार्ग योजना प्रस्तुत करनी होगी। इसमें पशु गति का नक्शा बनाना, मार्ग की ऊंचाई तय करना और ऐसे क्रॉसिंग डिजाइन करना शामिल होगा जो वास्तव में काम करें। इंडियन एक्सप्रेस बताता है कि यह मांग विशेषज्ञों की स्थानीय समाधान की ज़रूरत पर ज़ोर देने के बाद सामने आई। योजना अक्टूबर 2025 तक प्रस्तुत होनी है, जो यह तय करेगी कि यह हाईवे नामदाफा के वन्यजीवों के साथ कितना सहअस्तित्व में रह सकता है। दुनिया देख रही है कि भारत वास्तव में मददगार क्रॉसिंग बनाएगा या सिर्फ औपचारिकता निभाएगा।
पारिस्थितिक संवेदनशीलता
परियोजना एक प्रमुख जैव विविधता क्षेत्र से गुजरती है
नामदाफा पार्क लगभग 1,985 किमी² में फैला है और भारत का चौथा सबसे बड़ा राष्ट्रीय पार्क है। 2024 में इसे आधिकारिक रूप से एक इको‑सेंसिटिव ज़ोन घोषित किया गया, जो बाघ, स्नो लेपर्ड, तेंदुआ, रेड पांडा और फ्लाइंग स्क्विरल्स का घर है। यह हाईवे इसके कोर क्षेत्र से होकर गुजरता है—जो आमतौर पर विकास से सुरक्षित रहता है। यह किसी ग्रामीण सड़क को चौड़ा करने जैसा नहीं है—यह वैश्विक महत्व के वर्षावन को काटता है। यह परियोजना यह गंभीर सवाल उठाती है कि क्या इको‑सेंसिटिव ज़ोन की सुरक्षा पर्याप्त है जब राष्ट्रीय हित का दबाव बढ़ता है।
हितधारकों की चिंताएँ
स्थानीय आवाज़ें चेतावनी दे रही हैं
असम, अरुणाचल और संरक्षण समूहों के NGO और वन्यजीव विशेषज्ञ इस हाईवे को लेकर चेतावनी दे चुके हैं। वे आवासीय नुकसान, विखंडन और वन संसाधनों पर निर्भर जनजातियों पर प्रभाव के बारे में चिंता जता रहे हैं। पास के मिश्मी और दिगारो मिश्मी समुदायों के कारण प्रभाव पारिस्थितिकी से आगे बढ़कर सांस्कृतिक जीवन को भी छूते हैं। स्थानीय लोग बदलते जंगलों से औषधीय पौधों और जानवरों की कमी की आशंका जता रहे हैं। भारत के पाठकों के लिए—यह वन्यजीव के साथ-साथ सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा खोने जैसा है, और हम उत्तर‑पूर्व के नाज़ुक क्षेत्रों में देखी गई गलतियाँ फिर से दोहरा सकते हैं।
तुलनात्मक मंजूरी
अन्य हाईवे मंजूरियाँ सवाल उठाती हैं
उसी NBWL बैठक में आंध्र प्रदेश के लिए समान हाईवे मंजूरी दी गई—दो इको‑सेंसिटिव ज़ोन और एक टाइगर कॉरिडोर से गुजरने वाला चार-लेन गलियारा। इसी दौरान लद्दाख, सिक्किम और अरुणाचल में 32 रक्षा परियोजनाओं को भी मंजूरी मिली। यह पैटर्न एक राष्ट्रीय प्रवृत्ति दर्शाता है: संरक्षित क्षेत्रों को रणनीतिक ज़रूरतों के तहत सड़कों के लिए खोला जा रहा है। यह एक महत्वपूर्ण तनाव को उजागर करता है: जब शमन उपाय हल्के हों, तो विकास अक्सर पारिस्थितिक सुरक्षा को पीछे छोड़ देता है।
तात्कालिकता संकेत
टाइमलाइन के चलते तुरंत समझदारी से काम जरूरी
परियोजना की समीक्षा जून 2025 में शुरू हुई और WII को तीन महीने में मार्ग डिजाइन को अंतिम रूप देना है। निर्माण की संभावना है कि यह 2025 के अंत में शुरू होगा। मानसून जंगल की स्थिरता को खतरे में डालता है, इसलिए देरी से पहले ही कटाव और पेड़ों का गिरना शुरू हो सकता है। भारतीय पर्यावरण कानून सशर्त मंजूरी की अनुमति देता है—लेकिन यहाँ हर मौसम मायने रखता है। भारतीय पाठकों के लिए यह एक दौड़ जैसी है: परियोजना रक्षा के लिए तेज़ गति से बढ़ रही है, तो वन्यजीव सुरक्षा भी उतनी ही तेज़ और संतुलित होनी चाहिए। यदि पारिस्थितिक उपायों में देरी हुई या सतही रहे, तो नामदाफा के संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्र को अपूरणीय क्षति हो सकती है। यह समय है जब निर्माण की गति के साथ-साथ संरक्षण की गंभीरता भी बराबरी से निभाई जाए—हर योजना, हर डिजाइन और हर निर्णय में। यहाँ देरी सिर्फ समय की नहीं, प्रकृति के नुकसान की भी कीमत वसूल सकती है।
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