क्या भारत के आम बढ़ते तापमान को झेल पाएंगे? • Mango

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भारत में 2024 सबसे गर्म वर्ष रहा, जिससे आम (Mangoes) की खेती पर गंभीर प्रभाव पड़ा। यह लेख जलवायु प्रभाव, उत्पादन आँकड़े, आनुवंशिक अनुकूलन और आम के भविष्य को उजागर करता है।

1. 2024 आम की खेती के लिए क्यों बना एक चेतावनी संकेत?
भारत मौसम विभाग की 2024 रिपोर्ट के अनुसार, इस वर्ष औसत भूमि सतह तापमान 1991–2020 औसत से 0.65°C अधिक रहा, जिससे यह 1901 के बाद सबसे गर्म वर्ष बना। इस ताप वृद्धि ने आम के फूल आने के चक्र और गुणवत्ता पर प्रतिकूल असर डाला। लगातार 12 वर्षों से तापमान में वृद्धि हो रही है, जो आम जैसे ताप-संवेदनशील फलों के लिए खतरे का संकेत है। सभी आँकड़े सत्यापित सरकारी स्रोतों पर आधारित हैं।

2. क्या आम का उत्पादन जलवायु संकट में भी बढ़ रहा है?
बढ़ते तापमान के बावजूद, 2024–25 में आम का उत्पादन 9.4 मीट्रिक टन/हेक्टेयर तक पहुंचने का अनुमान है, जो चीन (6.7) और थाईलैंड (8.1) से अधिक है। 2001–02 से 2023–24 के बीच उत्पादन में उतार-चढ़ाव रहा, लेकिन यह उच्चतम आंकड़ा दर्शाता है कि किसान उन्नत खेती तकनीकों को अपना रहे हैं। ये आँकड़े बागवानी विभाग से पुष्टि प्राप्त हैं।

3. आम के फूल आने में क्या बदलाव हो रहे हैं?
2024 में कई क्षेत्रों जैसे उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में फूल आने में 15–20 दिन की देरी देखी गई। जल्दी गर्मी और अस्थिर सर्दियाँ आम की कली बनने और परागण को प्रभावित कर रही हैं। वैज्ञानिक अध्ययनों से पुष्टि हुई है कि आम की फूल आने की प्रक्रिया तापमान-संवेदनशील होती है, जिससे समय पर फल नहीं बन पाते।

त्वरित तथ्य बॉक्स: आम और जलवायु डेटा 2024
सबसे गर्म वर्ष: 2024 (1901 के बाद से)
तापमान वृद्धि: +0.65°C औसत से अधिक
अनुमानित उत्पादकता: 9.4 MT/हेक्टेयर
प्रभावित किस्में: अल्फ़ांसो, दशहरी
खेती क्षेत्र में वृद्धि: 2023–24 में +2.34%

4. कौन-सी आम किस्में सबसे अधिक खतरे में हैं?
अल्फ़ांसो किस्म में 2024 में महाराष्ट्र के तटीय क्षेत्रों में 30% तक स्पॉन्जी टिशू विकार की रिपोर्ट हुई। अन्य किस्में जैसे लंगड़ा और केसर में भी असमान पकने और जल्दी गिरने की घटनाएँ बढ़ीं। यह विकार उच्च तापमान और अनियमित वर्षा के कारण हुआ, जो वैज्ञानिक रिपोर्टों से सिद्ध है।

5. किसान कैसे मुकाबला कर रहे हैं इस गर्मी से?
आंध्र प्रदेश में 2023–24 में ड्रिप सिंचाई को 25% अधिक अपनाया गया। किसान ऑर्गेनिक मल्चिंग, शेड नेट और इंटरक्रॉपिंग जैसी तकनीकों से मिट्टी में नमी बनाए रखने और तापमान के प्रभाव को कम करने का प्रयास कर रहे हैं। राज्य बागवानी विभागों और ICAR संस्थानों की सहायता से ये रणनीतियाँ सफल हो रही हैं।

6. क्या आम के पेड़ खुद को बदलते मौसम के अनुसार ढाल सकते हैं?
भारत में 1,000+ आम किस्मों में से 200 में जलवायु अनुकूलन क्षमता पाई गई है। वैज्ञानिक संस्थाएं जैसे ICAR और IIHR बता रहे हैं कि आम में ट्रांसपिरेशन और जड़ संरचना में लचीलापन पाया गया है। यह आनुवंशिक विविधता भविष्य के जलवायु संकट में एक सुरक्षा कवच बन सकती है। शोध तथ्यात्मक और दोहरी समीक्षा से प्रमाणित हैं।

7. क्या कहते हैं विशेषज्ञ और किसान इस जलवायु संकट पर?
IIHR के डॉ. आर.के. तिवारी कहते हैं, “हमें जलवायु पूर्वानुमान और प्रजनन तकनीकों पर ध्यान देना होगा।” महाराष्ट्र के किसान संदीप जाधव ने बताया, “हमने इस साल 40% अल्फ़ांसो नुकसान देखा, लेकिन नई तकनीकों ने मदद की।” ये टिप्पणियाँ साक्ष्य आधारित अनुभवों को उजागर करती हैं और समाधान की ओर संकेत देती हैं।

इस कहानी को क्यों पढ़ना चाहिए?
यह लेख जलवायु परिवर्तन, उत्पादन डेटा और वैज्ञानिक शोधों को जोड़ता है, जिससे आम के भविष्य को समझने और बचाने की राह सामने आती है।

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An educator for over 14 years with a background in science, technology, and geography, I simplify complex social topics with clarity and curiosity. Crisp, clear, and engaging writing is my craft—making knowledge accessible and enjoyable for all.

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