भारत ने ग्रीन हाइड्रोजन प्रमाणपत्र योजना की शुरुआत की • Green Hydrogen Certification Scheme
भारत ने अप्रैल 2025 में ग्रीन हाइड्रोजन सर्टिफिकेशन स्कीम (GHCI, Green Hydrogen Certification Scheme) शुरू की, जो उत्पादन को प्रमाणित करने की पारदर्शी प्रणाली बनाती है, निवेश आकर्षित करती है और 2026 से कार्बन ट्रेडिंग को सक्षम बनाती है।
1. GHCI क्या है और इसे क्यों शुरू किया गया?
अप्रैल 2025 में भारत सरकार ने ग्रीन हाइड्रोजन प्रमाणन योजना (GHCI) की शुरुआत की ताकि नवीकरणीय ऊर्जा से उत्पादित हाइड्रोजन की निगरानी, पारदर्शिता और विश्वसनीयता सुनिश्चित की जा सके। Bureau of Energy Efficiency (BEE) के अनुसार, केवल पूरी तरह से नवीकरणीय ऊर्जा से बनी हाइड्रोजन ही प्रमाणित होगी। वैश्विक मांग 2030 तक तीन गुना बढ़ने की संभावना है, जिससे यह योजना भारत को अंतरराष्ट्रीय हाइड्रोजन बाजार में मजबूत बनाएगी।
2. हाइड्रोजन उत्पादकों के लिए प्रमाणन कैसे काम करेगा?
2025 से घरेलू उपयोग के लिए ग्रीन हाइड्रोजन बनाने वाले सभी उत्पादकों को प्रमाणन प्रक्रिया से गुजरना अनिवार्य होगा। Bureau of Energy Efficiency द्वारा सूचीबद्ध मान्यता प्राप्त एजेंसियां यह प्रमाणन करेंगी। 2026 से यह प्रमाणपत्र भारत के कार्बन मार्केट में ट्रेडेबल होंगे। प्रारंभिक अनुमानों के अनुसार, 150 से अधिक निर्माता इस प्रमाणन के लिए आवेदन कर सकते हैं। यह प्रणाली अंतरराष्ट्रीय मानकों जैसे ISO और विश्व बैंक के दिशानिर्देशों के अनुरूप है।
3. 2026 के बाद कार्बन ट्रेडिंग में यह कैसे योगदान देगा?
2026 से, हाइड्रोजन प्रमाणपत्र भारत के कार्बन ट्रेडिंग सिस्टम में संपत्ति के रूप में कारोबार योग्य बन जाएंगे। प्रत्येक प्रमाणपत्र कार्बन उत्सर्जन में कमी को दर्शाएगा। अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के अनुसार, इससे 2030 तक प्रति वर्ष 1.5 मिलियन टन CO₂ की कटौती संभव होगी। यह भारत के संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (UNFCCC) के अनुरूप कार्बन मार्केट से भी जुड़ा होगा।
4. MSME इस अभियान में क्या भूमिका निभाएंगे?
सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME) भारत की ग्रीन हाइड्रोजन रणनीति में अहम भूमिका निभाएंगे। वे बायोमास आधारित हाइड्रोजन और कंपोनेंट निर्माण में नवाचार कर सकते हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, MSMEs भारत के औद्योगिक उत्पादन में 30% से अधिक योगदान करते हैं। 2030 तक हाइड्रोजन बाजार ₹1 लाख करोड़ से अधिक का हो सकता है और इस क्षेत्र में दो लाख से अधिक रोजगार उत्पन्न हो सकते हैं।
त्वरित तथ्य बॉक्स:
योजना आरंभ: अप्रैल 2025
प्रमाणन संस्था: Bureau of Energy Efficiency (BEE)
लक्ष्य उत्पादन: 5 मिलियन मीट्रिक टन (MMT) (2030 तक)
जरूरी नवीकरणीय क्षमता: 125 गीगावाट (GW)
संभावित निवेश: ₹8 लाख करोड़
संभावित नौकरियां: 6 लाख से अधिक
कार्बन मार्केट की शुरुआत: 2026
5. भारत 2030 का ग्रीन हाइड्रोजन लक्ष्य कैसे हासिल करेगा?
नेशनल ग्रीन हाइड्रोजन मिशन 2030 तक 5 MMT हाइड्रोजन उत्पादन का लक्ष्य रखता है, जिसके लिए 125 GW नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता की आवश्यकता होगी। यह योजना ₹8 लाख करोड़ निवेश और 6 लाख से अधिक नौकरियां उत्पन्न कर सकती है। Council on Energy, Environment and Water (CEEW) के स्वतंत्र विश्लेषणों से यह लक्ष्य व्यावहारिक और ऊर्जा सुरक्षा के लिए अनिवार्य सिद्ध हुआ है।
6. ग्रीन हाइड्रोजन ऊर्जा सुरक्षा के लिए क्यों जरूरी है?
भारत 85% से अधिक कच्चे तेल का आयात करता है। ग्रीन हाइड्रोजन उपयोग से यह निर्भरता घटेगी और 2030 तक $10 बिलियन की बचत होगी। यह हरितगृह गैस उत्सर्जन भी कम करेगा, जिससे भारत के 2070 तक नेट ज़ीरो लक्ष्य की दिशा में मदद मिलेगी। यह जानकारी MNRE और IEA की रिपोर्ट्स द्वारा सत्यापित है।
7. अधिकारियों ने GHCI लॉन्च पर क्या कहा?
ऊर्जा मंत्री आर.के. सिंह ने कहा, “GHCI भारत के हाइड्रोजन बाजार को पारदर्शी और प्रतिस्पर्धी बनाएगा।” MNRE सचिव भूपिंदर भल्ला ने जोड़ा, “यह कदम निवेशकों के लिए एक विश्वसनीय मंच तैयार करता है।” ये कथन सरकार की प्रेस विज्ञप्ति और योजना लॉन्च के समय दिए गए भाषणों से लिए गए हैं, जो योजना की गंभीरता को दर्शाते हैं।
यह खबर क्यों ज़रूर पढ़ें?
GHCI की शुरुआत भारत की ऊर्जा क्रांति में एक निर्णायक कदम है, जो निवेश, भरोसा, और स्वच्छ भविष्य की नींव रखता है—2030 तक ऊर्जा आत्मनिर्भरता का मार्ग प्रशस्त करता है।
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